• Published : 06 Nov, 2014
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कुछ तुम अधूरी सी वहां
 कुछ मैं अधूरा सा यहाँ

 कुछ तुम ख़ामोशी से धड़कती हुई
 कुछ मैं तनहा सा तड़पता हुआ

 कुछ तुम यादों के सपनों को पिरोती हुई
 कुछ मैं एहसासों से बादलों को भिगोता हुआ

 कुछ तुम चंचल बहती नदिया सी
कुछ मैं किनारे पे बंधी एक कश्ती सा

 कुछ तुम प्यार के सागर सी
 कुछ मैं रेगिस्तानी प्यासी गागर सा

 कुछ तुम अधूरी सी
 कुछ मैं अधूरा सा 

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Nishant Bhatnagar

Member Since: 06 Nov, 2014

अपने जीवन की नैया खेता एक नन्ही जान हूँ ज़िन्दगी के इन अजीब रास्तों से अनजान हूँ इन्द्रधनुष...

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