• Published : 09 Jun, 2017
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मरासिम .....

 

मैने एक रिश्ता जोड़ा था जिसकी गिरहे साफ नज़र आती है, फिर भी वाबस्ता हूँ क्योंकि मरासिम तोड़ने से बेहतर है छोड़ दिया जाए। 

 

टूटा धागा और मरासिम फिर कब जुडे़ है, जुड़ने पर गिरहे आ ही जाती है। 

 

जरूरी है रिश्तों को हिफाजत से जोड़ के रखा जाए, ये सरल ना सही पर मुश्किल भी नहीं है। 

 

जिस तरह कुए से पानी खींचने वाली रस्सी के बल से संग मे अपना निशाँ सालों मे बनाने मे कामयाब हो जाती है, उसी माफिक रिश्तों मे कश्मकश और कड़वाहट आ ही जाती है। 

 

जरूरी नहीं कि हर मरासिम और फल शीरी ही हो, उसे परखने से बेहतर है सब्र से तोला जाये और खुले अासँमा मे छोड़ दिया जाए। 

 

जो हवा सफ़ीनो को साहिल पर बहा लाती है वहीं नसीम-ए-तूफां कश्तियो को गर्क कर भी कर देती है। 

 

गर जिदंगी बेहतर ना सही खुशगवार तो बना ही सकते है, छूटे मरासिम और बीते मौसमो की कसक शायद मुझे फिर बहा ले आयी है मेरे इश्क के जानिब......... 

 

मरासिम - relations, रिश्ते 

गिरह- knots 

हिफाजत - safe

संग- stone

कश्मकश - struggle 

शीरी - sweet

सफीने - boats

साहिल - bank, किनारा

नसीम-ए-तूफां - breeze of storm

गर्क - drowned, डूबना

कसक (کسک) -pain, affliction

 

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Vinod Chawla

Member Since: 17 Mar, 2017

Writing ghazals hindi/urdu and stories....

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