• Published : 09 Sep, 2015
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आज फिर एक माँ का दामन आंसुओं से भीग गया ।

ममत्व की कोई

सीमा नहीं,

जात नहीं,

परिचित

अपरिचित

का ढोंग नही ।

अविरल धारा की तरह,

पूरे जहाँ को समेटे

इक इकाई की तरह

अविरल बहती है।

अगर मेरी आँखों से जलधारा बह निकली,

तो उस ह्रदय वेदना की पराकाष्ठा की, तो

कोई सीमा ही नहीं, जिसने अपना लाल

दूध के दाँत गिरने से पहले ही खो दिया हो;

मौत के उस विभीत्स रू प से मैं सिहर गई।

हाल ही में ख़बर पढ़ते समय, मेरी नज़र

इक ख़बर पर जा टिकी ।

टिकी क्या, वही पत्थर सी हो गईं।

दो बच्चे खेल खेल में

आपस में गुत्थम-गुत्था, होते हुए

बालू के ढेर पर जा गिरे...

जो किसी और का इलाका था।

जानते हैं किसका?...

कुत्तों का!

जी हाँ, चार पाँच कुत्ते,

बालू के ढेर पर, सुस्ता रहे थे ।

एक बच्चा तो डर कर, संभलते हुए

उठकर सरपट भागा;

दूसरा बच्चा, पाँच साल का

अभी संभल भी नहीं पाया, कि

उनके पैने दातों और पंजों ,की चपेट में आ गया ।

बड़ी बेरहमी से सबने काटा,

और उनके रौष का शिकार बन गया।

उस बच्चे का आर्तनाद,

लोथड़ा सा बेजान शरीर,

माँ बाप का विलाप,

सब जीवंत हो, मानो

चलचित्र की भाँति

आँखो में समा रहे थे

कानों में शीशा घोल रहे थे,

कोहराम मचा रहे थे।

हाय!

नन्हीं सी जान, क्या कर्म लिखवा कर

इस धरती पर आई , और कैसे फ़ना हुई ?

काश यह ख़बर मेनका गांधी ने सुनी होती ।

या संसद में बैठे देश के सभासद,

जो खुद कुत्ते बिल्लियों की भाँति लड़ते हैं

काश उन्होंने भी उसकी मार्मिक पुकार सुनी होती ,

तो इस दिशा में भी थोड़ा ध्यान देते।

जानवर तो जानवर होता है, सिर्फ

यह सोचकर चुप बैठना , क्या ठीक है?

हमारे आपके घरों के आसपास

ऐसे आक्रमक कुत्ते आजकल

आम दिखाई देने लगे हैं;

इसकी गवाह मैं खुद भी हूँ।

कहते है...

जिस तन लागे, सोई तन जाने

और क्या जाने पीर पराई।

अगर पराई पीड़ की कसक हर

दिल पर पहुँचे , तो दावा है

जीवन के मक़सद, खुदबखुद

मंज़िल पा जाँए ।

फिर ऐसी दर्द नाक मौत

किसी नन्ही सी जान

के भाग्य में न आए।

About the Author

Kiren Babal

Member Since: 05 Sep, 2015

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