• Published : 01 Jun, 2017
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नैनों में जिसके मधुशाला थी, ऐसी उसकी झांकी थी|

उस बारिश में बहती उसकी माया थी, जिसमे उसकी काया थी|

गुलाब सी पंखुड़ियों जैसे होठ थे जिसके, जिनमे से निकलती मधुशाला थी|

पानी सी निर्मल वाणी थी जिसकी, जिन्हें सुन कोयल भी गाया करती थी|

वो स्नेह्सागर से आई थी बस प्यार की तलाश में, बहुत ढूंढा पर मिला ना कोई अनमोल उसे सिर्फ मिली मोह माया थी|

एक बात थी मेरे मन में भी, मुझे मिलना था उससे कही दूर गगन में|

जहाँ सिर्फ दो राहों का आगमन होता, एक वो होती और एक में होता|

मिट्टी के इस पिंज़र को तोड़ जाना था उसे तो दूर कही, बस और ढूंढ रही वो साथी थी|

ऐसी उसकी झांकी थी, ऐसी उसकी झांकी थी||

 

प्रेम हुआ जिसके बातो से जिसकी मधुर आवाजों से, ऐसी उसकी वाणी थी|

मेरे स्वप्न में वो बस आती थी, क्योकि उससे पावन जगह ना कहीं और वो पाती थी|

कुछ कहना था उससे शायद, जो ना कभी वो कह पाती थी|

इस मोह माया की दुनिया से दूर उसे जाना था, एक सुन्दर सा महल बनाना था|

दूर देश से वो आई थी, जिसमे उसकी रूह समायी थी|

रैना ने जिसे चाहा था, नदियों ने जिसे सवारा था|

ऐसी थी वो ऐसी थी, जिसे मैने चाहा था|

चाह रह गयी बस मन में, कभी ना मैने उसे पाया था|

वो ना थी इस दुनिया की ना उस पार की, कही दूर स्वर्गलोक से आई थी|

सब छल कपट से दूर मोह-माया से परे, ऐसी उसकी काया थी|

सिखाना था उससे कुछ इंसानों को, कि कुछ नहीं रखा इन बातो में, इन् भूली बिसरी रातो मे|

कुछ कर गुज़र ऐसा की दुनिया याद करे, बस यही उसे सिखाना था|

बिना मदिरा पान के नशा जिसे चढ़ता था, ऐसी वो मधुशाला थी|

जिसकी झलक मात्र को तरसी पूरी भूमि थी, ऐसी उसकी सूरत थी|

कहीं मिले फिर वो मुझे तो बस कहना उससे इतना था, बहुत प्रेम किया है तुझसे बहुत प्रेम किया|

बस एक पल के लिए लौट आ उन् स्वप्नलोक में, जहाँ कभी तू आती थी|

ऐसी उसकी झांकी थी, ऐसी उसकी झांकी थी||

नैनों में जिसके मधुशाला थी, ऐसी उसकी झांकी थी|

उस बारिश में बहती उसकी माया थी, जिसमे उसकी काया थी|

गुलाब सी पंखुड़ियों जैसे होठ थे जिसके, जिनमे से निकलती मधुशाला थी|

पानी सी निर्मल वाणी थी जिसकी, जिन्हें सुन कोयल भी गाया करती थी|

वो स्नेह्सागर से आई थी बस प्यार की तलाश में, बहुत ढूंढा पर मिला ना कोई अनमोल उसे सिर्फ मिली मोह माया थी|

एक बात थी मेरे मन में भी, मुझे मिलना था उससे कही दूर गगन में|

जहाँ सिर्फ दो राहों का आगमन होता, एक वो होती और एक में होता|

मिट्टी के इस पिंज़र को तोड़ जाना था उसे तो दूर कही, बस और ढूंढ रही वो साथी थी|

ऐसी उसकी झांकी थी, ऐसी उसकी झांकी थी||

 

प्रेम हुआ जिसके बातो से जिसकी मधुर आवाजों से, ऐसी उसकी वाणी थी|

मेरे स्वप्न में वो बस आती थी, क्योकि उससे पावन जगह ना कहीं और वो पाती थी|

कुछ कहना था उससे शायद, जो ना कभी वो कह पाती थी|

इस मोह माया की दुनिया से दूर उसे जाना था, एक सुन्दर सा महल बनाना था|

दूर देश से वो आई थी, जिसमे उसकी रूह समायी थी|

रैना ने जिसे चाहा था, नदियों ने जिसे सवारा था|

ऐसी थी वो ऐसी थी, जिसे मैने चाहा था|

चाह रह गयी बस मन में, कभी ना मैने उसे पाया था|

वो ना थी इस दुनिया की ना उस पार की, कही दूर स्वर्गलोक से आई थी|

सब छल कपट से दूर मोह-माया से परे, ऐसी उसकी काया थी|

सिखाना था उससे कुछ इंसानों को, कि कुछ नहीं रखा इन बातो में, इन् भूली बिसरी रातो मे|

कुछ कर गुज़र ऐसा की दुनिया याद करे, बस यही उसे सिखाना था|

बिना मदिरा पान के नशा जिसे चढ़ता था, ऐसी वो मधुशाला थी|

जिसकी झलक मात्र को तरसी पूरी भूमि थी, ऐसी उसकी सूरत थी|

कहीं मिले फिर वो मुझे तो बस कहना उससे इतना था, बहुत प्रेम किया है तुझसे बहुत प्रेम किया|

बस एक पल के लिए लौट आ उन् स्वप्नलोक में, जहाँ कभी तू आती थी|

ऐसी उसकी झांकी थी, ऐसी उसकी झांकी थी||

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Rahul

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