• Published : 18 Mar, 2017
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तस्वीर.....

 

आज कुछ पुरानी तस्वीरे हाथ मे आयी थी। एक-एक करके पलटती तस्वीर मानो कई सदियों की कहानी कह रही थी। उन तस्वीरो से बदलते हुए मंज़र की सदा जैसे कानो से सर-सर गुज़र रही थी। 

 

हयात-ओ-तकदीर को तीर की तरह चीरता वक्त अपने निशाँ-ए-पा बे-खबर छोड़ जाता है आैर हम उसकी मौज मे बहे चले जाते है। 

 

कुछ पोशिदा तसवीरे मेरे दिल के आईने मे कभी-कभी उभरते नज़र आती है, और उनकी शेख-अदाओ की शीर कहानी कहती है। यक जब ख्याल आता है, वो माझी था, कही खो गया हूँ तो रूह काँप उठती है। कैसे-कैसे तरकीबे कर समझाता हूँ कमबख़्त दिल-ऐ-मरहूम को। अपने ही डर को कैसे काबू रखे, ये मुमकिन न सही मुश्किल तो है। 

 

शायद दिल को कही न कही सुकुन है वो दरमियाँ न सही ख्याल-ओ-ख्वाबो में सही।

 

आरज़ू को इतनी हवा न दे दिल-ऐ-मरहूम, 

सफीने मोहब्बत के फिर से रवा हो जाये।

 

किसी को दिल मे बसा रखा है।  जी रहा है वो मेरे ही मे कही, क्या इतना काफी नहीं जीने के लिए.....

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Vinod Chawla

Member Since: 17 Mar, 2017

Writing ghazals hindi/urdu and stories....

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