• Published : 17 Sep, 2015
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तेरी नज़रों की मैं  एहसानमंद हूँ
मैं  खुशनसीब हूँ के मैं तुझे पसंद हूँ

तेरे लफ्ज़ बयां न कर सकें जो
मैं उन ख्यालों की कहानी सी हूँ

तेरे लबों से मिलकर रौशनी में ताफ्दील हो जाए जो
मैं उस मचलते हुए परवाने सी हूँ

तेरे एहसास से मिलकर निखर जाए जो
ए भवर मैं उस गुलिस्तान सी हूँ

अपने चाँद को अपनी गोद में रखे हुए है जो
मैं उस ठहरे हुए पानी सी हूँ

शबनमी बूंदों को समेटती जाए जो
मैं उस तपती हुई ज़मीन सी हूँ

सूने आँगन में गूँज जाए जो
मैं उस बेलगाम हसी सी हूँ

तेरे आगोश में घर बनाए है जो
मैं उस नन्ही पारी सी हूँ

तेरी राह को सदा तकती है जो
मैं उन बोझल निगाहों सी हूँ

तेरी चाह में हर रोज़ पन्नपते है जो
मैं उन बेहिसाब ख्वाहिशों सी हूँ

आ पूरा कर दे मुझे, पूर्णिमा हो जाऊं
ये एहसान करदे के फन्ना हो जाऊं

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Kriti

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