ये जो बस है
कहती है ज़िंदगी की कहानी
इसमे भीड़ बहुत है
पर मुझे जगह अपनी बनानी
बस में चढ़ते ही ज़िंदगी का सफर शुरू हो जाता है
भीड़ चुनौती ,
और आने वाला हर बस स्टॉप
मंज़िल बन जाता है
अपनी जगह बनाने क लिए ,
मेहनत करनी पड़ती है
बस में चढ़ते ही ,
ये बात जान पड़ती है
बस में लड़ते टकराते
अपने अधिकार तक पहुँच तो जाती हूँ ,
पर वहाँ भीड़ से
जान -आफत में आती है
सीट पर बैठकर
आधा सफर पूरा हो जाता है
वहां बैठे बैठे
मंज़िल का इंतज़ार शुरू हो जाता है
और बस स्टॉप आते ही सफर पूरा हो जाता है……
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