• Published : 27 Aug, 2015
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छोटा था पर अच्छा था वो बक्सा

जिसमें मेरे दो ही खिलौने रहा करते थे

बड़ा है कमरा मेरा अब

पर वो खिलौने मिलते ही नहीं ।

 

छोटा था पर अच्छा था घर का आँगन

चहचहाथी चिड़िया रोज़ मिलने को आती थी जहाँ

बड़ा बागीचा है मेरा अब

पर जाने कब सुबह निकल जाती है ।

 

छोटा था पर अच्छा था मोहल्ला अपना

सब चाचा, ताऊ और मामा के घर ही थे वहां

बड़ा है शहर मेरा अब

मगर यह रिश्ते हैं की सँभलते ही नहीं ।

 

छोटी थी पर बहुत "बड़ी" काका की वो दुकान

मेरी चाहत से कहीं जयादा था वहां पे सामान

अब मैं बड़े- बड़े मालों में  नज़र आता हूँ

पर अक्सर खाली हाथ ही घर लौट आता हूँ ।

 

छोटी थी पर अच्छी थी लकड़ी की वो खाट

छत पर लेटे जिस पर से तारे गिना करता था

अब बहुत मुलायम है बिस्तर मेरा

पर अच्छा सपना देखे शायद अरसा हो गया ।

 

संजो के न रख सका अपनी छोटी चीज़ों को,

ज़िन्दगी शायद मैंने यह गलती कर ली

मांगने को तो खुदा से बहुत कुछ था मगर

जाने क्यों मैंने बस बड़े होने की तमन्ना कर ली ।

About the Author

Hemant Vijh

Member Since: 21 Aug, 2015

With over twenty years of professional experience and having travelled the globe for his work Hemant likes to spend his spare time weaving his personal experiences in words, shaping them into short hindi poems. Apart from his own experience his ...

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