• Published : 27 Apr, 2024
  • Comments : 0
  • Rating : 5

 

छूने चला जो परिंदा देखो आसमान

वो फिर ज़मीन का तक न रहा

रास्तों के छालों से सहम जाता वो तो

अब देखो छालों को वो सहला रहा

 

ये ऐसा क्या हुआ जो वो बहक गया

पसीने से लथपत, अब खून से महक गया

 

आदर्शों कि नुमाइश रह गयी सिर्फ नारों में

ज़मीर कैसे नीलाम हुआ, देख बीच बाज़ारों में

रौशनी समझ ताकती थी “मुसाफिर” को अंधी आँखें

देखो खड़ा है आज वो भी बिकने को कतारों में

 

आसरों और उमीदों पर धोके कि एक परत जम जाएगी

“मुसाफिर” कि कहानी अनगिनत कहानियों कि तरह दफ़न हो जायेगी

 

सालों बाद, धूल जमेगी किताबों पर, लेकिन कहानी वही रहेगी 

किरदार ज़रूर बदलेंगे, नुक्कड़, गलियाँ वहीँ रहेंगी

चेहरे पर वक़्त कि लकीरें दिखने लगेंगी

आँखें फिर उन्ही नुक्कड़ों पर आकर तरसेंगी, यादें बरसेंगी

 

किताबों के अधूरे पन्ने स्याही का पता पूछेंगे

“मुसाफिर” के चेहरे के रेशे अपनी खता पूछेंगे

 

कच्चे रास्तों और नुक्कड़ों पर जब फिर उम्मीद जागेगी

अंधी आँखें, खोखली उमीदें फिर एक नुमाइंदा मांगेंगी

बिखरे हुई शाखों पर जब पत्ते फिर लौट आएँगे

फक्र से भीनी मुस्कराहट दबी आवाज़ में कहेगी – “मुसाफि लौट आया है”

 

 

Based on the protagonist of A Thousand Unspoken Words by Paulami Duttagupta

About the Author

Trishgun

Member Since: 13 Aug, 2015

Nil! ...

View Profile
Share
Average user rating

5 / 1


Kindly login or register to rate the story
Total Vote(s)

2

Total Reads

821

Recent Publication
Musaafir
Published on: 27 Apr, 2024
Uniform of a Soldier
Published on: 30 Sep, 2015

Leave Comments

Please Login or Register to post comments

Comments