• Published : 27 Aug, 2015
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पल, जो पल है पल-पल करके ,

बिखरा-बिखरा जाता है। 

अँधियारा काला सरसर करके ,

निखरा-निखरा  जाता है। 

 

सेकंड ,मिनट ,दिवस और वर्ष ,

सरपट दौड़ा जाता है। 

समय फिसलता रेत सदृश्य,

क्षण-भर कहाँ  टिक पाता है ?

 

अजब-गजब धुँआ सा भरता ,

कल कहीं छिप जाता है। 

सपना-तारा टिम -टिम करता 

दूर नज़र कही आता है। 

 

सुबह,सवेरा दर दर करके ,

फैला फैला जाता है। 

अँधियारा काला सरसर करके ,

निखरा निखरा जाता है। 

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Hema Gusain

Member Since: 17 Jul, 2015

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