• Published : 01 Sep, 2015
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कलाकारों की हर ब्रीड 

तशरीफ़ फरमाती है यहां 

सताविन, पीपल, पकड़ी और दीगर  

दरख्तों के नीचे पनपती रहती है 

 

हुक्के की मानिंद बुज़ुर्गों की बातें भी 

गुड़गुड़ाती हुई मालूम पड़ती है यहां  

 

कोई सिंगर बेफिक्र 

खुद में मस्त 

अपनी आवाज़ तराशता हुआ मिल जायेगा

"मेरे नैना सावन भादो 

फिर भी मेरा मन प्यासा..." 

हर कोई प्यासा ही आता है यहां 

 

एक्टर अपनी ऑब्जर्वेशन का 

पिटारा भरते हुए मिलेंगे

 

कागज़ों पे कब कौन-सी

हरकत उभर आये आपकी 

आँखों को खबर भी नहीं होती अक्सर

 

चाय उस दिलकश हसीना की तरह है 

जिसके दीवाने सब हैं 

मौक़ा मिलते ही होंठों से लगा लेते हैं

 

सारे फ़िक्र-ओ-मसाइल

सिगरेटों के धुँए में उलझे मिलते हैं 

 

यहीं सिगरेट के खोखे के सामने चबूतरे पे 

कुछ बुज़ुर्गवारों की टोली लूडो पे 

कुछ यूँ पिली रहती है जैसे बचपन हर खेल पे. 

 

यहां वक़्त को जल्दी नहीं रहती 

अपनी औकात में रहता है

यहां ख्वाहिशें सपनों की दर-ओ-दीवार से 

बेलों-सी लिपटी रहती हैं. 

यहां सपने महकते हैं इत्तर से भी गजब 

 

संडे को गर ग़लती से आना हो जाए इधर 

नज़ीर के शे'र "जब लाद चलेगा बंजारा" 

वाला फील आता है. 

 

About the Author

Sunny

Member Since: 24 Aug, 2015

ख़्वाब देखने और लिखने का आदी हूँ. ...

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