• Published : 27 Aug, 2015
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आज की हूँ मैं सशक्त नारी
मुझको नहीं तुम बाँध पाओगे
अंधी समाज की रीतियों में
बंधी ना मुझे बना पाओगे

बस करो
अब बंद करो
बेड़ियों में मुझे
रखने का जतन

प्रयत्न करो जितने हज़ार
पर अब और न जकड पाओगे
उन्मुक्त गगन में
उड़ने से मुझे
तुम न अब
रोक पाओगे

गौरव हम ही से
तुम्हारा
हमसे ही है
चमन खिले

हम ही से है रोशन
यह जीवन तुम्हारा
हम ही से
दुनिया आगे बढे

अब न तुम झुका पाओगे
सफलताओं को छूने से
तुम अब मुझे ना रोक पाओगे

अब नहीं और सहनशीलता की देवी
मुझे है बनना
औरत का फ़र्ज़
इस दोगले समाज से
अब नहीं है मुझे और सीखना

आज की हूँ मैं सशक्त नारी
अबला समझने की भूल मुझे 
अब तुम और ना करना

शस्त्र उठा 
अब मैं वार करुँगी
जो भी पथ में आएगा
हक़ का मेरे ग़र
हनन करने की 
चेष्टा करेगा
मैं सहांर करुँगी

आज की हूँ मैं सशक्त नारी 
अब न डरूँगी
ममता की मूर्त बन
अब मैं और न सहूंगी

चीर के सीना रख दूंगी
हर उस शख्स का 
बुरी नज़र से जो 
मेरी ओर रुख करेगा

अब मैं चुप रहने की 
भूल ना करुँगी 
आज की हूँ मैं सशक्त नारी 
अपनी आवाज़ बुलंद करुँगी!

About the Author

Rachna Arora

Member Since: 13 Aug, 2015

                             Dr. Rachna Arora is a counseling psychologist, blogger, poetess and a happy mother who loves to write on human behavior, relationships and self improvement. With a PhD in psychology and years of counsel...

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