• Published : 24 Aug, 2015
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पूछना  है आज   तुझसे  बस इक सवाल यही /

 मुझे बनाने वाले /

क्यों   दी नजाकत की सौगात मुझे ?

जब चलना  ही था कठोर  कंटीली राहों पर /

क्यों दी  मुझे    उड़ानें उम्मीदों की ,आशाओं की ?

 जब  मेरी परवाजों की किस्मत में  तो ताले ही लिखे थे /

क्यों बहाये हृदय में मेरे भावनाओं के सागर ?

जब मुझे तो  सूखे सेहराओं   में  ही जीना  था /

क्यों बसाये वो  सुनहरे सपने मेरे नयनों में ?

जब दिन का उजाला  ही नहीं उन सपनों के   नसीब में था /

क्यों  मेरे हृदय को  जकड़  दिया नेह और ममता की उस डोर से?

 जो बन गई बेड़िया मेरे  ही  पैरों की/   

क्यों  मेरे कन्धों पर  रिश्तों को  भी  ढ़ोने का भार डाला /

जिनको चुनने का हक़ भी मुझे नहीं था ?

क्यों मुझे समझ का तोहफा दिया तूने /

जब मुझसे मुतालिक फैसले  करने तो औरों को ही थे /

क्यों  दिखाए सपने उस जीवन  के मुझे ?

 जिस को देने वाले ही मुझे कत्ल कर रहे अपने ही हाथों  से /

बन कर रह गया है  क्यों?

 जीवन मेरा  अनवरत   संघर्षों की  एक दास्ताँ /

सोचता तो होगा तू भी कभी तो /

मुझको बनाने वाले /

जीवन को सुंदर बनाने वाली तेरी ही इस  रचना का /

सृष्टि में सृजन का  योगदान देने वाली नारी का /

सुख दुःख में मानव  के साथ निभाने वाली नारी का/ 

 वज़ूद  तार तार  हो रहा  सरे आम  क्यूँ ?

 अपने अस्तित्व  की  अस्मिता  पर  वह  सवाल कर रही है क्यूँ ?

सोचता तो होगा तू भी कभी तो /

मुझको बनाने वाले ..........

About the Author

Saroj Singh

Member Since: 13 Apr, 2014

I loveto  write and read  poetry  ,stories .memoirs etchave witten a poetry  book which is under publication right now ...I  write on  three...blog  .  1.dalal saroj 99.wordpress.com  (meri jamin mera...

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