• Published : 03 Sep, 2015
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कबुल करता हुँ मै तुम पे मरता हुँ तु भी ये भुल कर .!

कबुल कर ..!

तेरी साँसों मे जो गर्मी शर्द रातों मे ये नरमी...!

मै बेशक इस अदा मे मशगुल रहता हुँ .!

कबुल करता हुँ मै तुम पे मरता हुँ तु भी ये भुल कर .!

कबुल कर ..!

कभी दबोच कर कभी नोचकर दिल के बिस्तर पर तु झुलती... हाथो का अहसास जिस्म को सहलाता.. लबो को रूह से लगाकर चुमती ... तरंगों पर सैलाब सा उमड़ कर रंगीनियों का बहाव घोलता हुँ ....!

कबुल करता हुँ मै तुम पे मरता हुँ तु भी ये भुल कर .!

कबुल कर ..!

आख़िर वक़्त सा दौड़ता ये समा .. ये बुझा सा है फैलता धुँआ ... अग्न तो ज़हन मे लगी है .. जिस्म फिर क्यों शुलगता हुआ .?.? जवानी पर चढ़कर, रवानी की चादर ओढ़कर बेपरवाही मे डोलता हुँ ...!

कबुल करता हुँ मै तुम पे मरता हुँ तु भी ये भुल कर .!

कबुल कर ..!

About the Author

Kapil Pujari

Member Since: 31 Aug, 2015

मेरे ज़हन मे एक दुनिया है, मै वहाँ का बाशिंदा हुँ ...! उस दुनिया मे ख्याल ही है जो मेरे जीने का सहारा ...

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