• Published : 17 Oct, 2015
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मेरे मुस्कुराने का कारन हो तुम
तन्हाई में गुनगुनाने का कारन हो
तपती दोपहर में बरसते सावन में 
भीड़ में और दूर तलक 
वीरान उदास राहों में 
कभी फूलों भरी और 
कभी छितराए हुए काँटों में
बेपरवाह चलते जाने का कारन हो 
जब कभी तन्हाई मुझे सताती है 
दिल को झकझोरती है और 
आत्मा को जलाती है 
लेकिन वो भूल जाती है 
उसके साथ-साथ तुम्हारी याद 
हर लम्हा मुझे सहलाती है 
और अहसास ये होता 
तुम मेरे साथ हो 
जीवन के हर सफ़र में 
ऊँची-नीची हर डगर में 
मेरे ख्यालात हो 
निराशाओं के सूने सज़र में 
एक जज्बात हो जो हर छन मुझे 
बिना थके बिना रुके 
चलने को कहता है 
और साथ रहता है मेरा साया बनके 
अक्सर ऐसा मक़ाम भी आता है 
जब ठहर जाने को जी चाहता है 
थक जाते है कदम 
टूट के बिखर जाने को जी चाहता है 
उस पल हाथ मेरा थाम कर 
तुम क्षितिज़ को निकलती हो 
मैं मंत्रमुग्ध सा देखता हूँ तुम्हें 
एकटक-अपलक 
और बसा लेना चाहता हूँ 
अपनी आँखों में सदा के लिए
काश वक़्त ठहर जाये
ये लम्हा ना बिखर जाये     
तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ है 
जीवन यूँ ही गुजर जाये 
 

About the Author

Brijesh Kumar

Member Since: 27 Aug, 2015

भावों को शब्दों में ढाल देता हूँ,कुछइस तरह दिल का गुबार निकाल देता हूँ ...

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