
ये नए नए अंकुर जो अभी फूटने को है,
ये गीली मिट्टी के ढांचे जो अभी सूखने को है !
इन्ही के पंख कल आसमान को रंगेंगे,
इन्ही के स्वर कल इस रंगमंच में घुलेंगे !
ये बोल है जिनमे कल कई अँतरे जुड़ेंगे,
ये सागर के मोती से है जो कल सूरज की किरणों से चमकेंगे !
ये खिड़कियों के पर्दे है जो अगले मौसम खुलेंगे,
इन्ही झरोके से कल हम अपना बचपन देखेंगे !
ये हवाओं को भेद सपनो की उड़ान लेंगे,
कई टूट जायेंगे तोह कई आसमान छुएंगे !
समाज के दायरे पे कई दस्तक देंगे,
कई उन्हें तोड़ के नए आयाम लिखेंगे !
इन्हे किसी पुस्तक में कोई फूल सा न छुपाना,
इन्हे खुली वादियों में खिलने देना, इन्हे अपने मन की करने देना !
इनके विचारो के भंवर से नए मंथन होंगे,
माली सा बस मेरा दायित्व है, खिलने का हक़, बेलो सा बेलगाम होने का हक़ इनका है !
पुराने कदमों के निशान से अलग इन्हे चलने देना,
ये डूब के तैरने सीखे इन्हे ऐसे हौसले देना !
ये बचपन है इसे पनपने देना !!
About the Author

Comments