
समाज के कई पहलुओं का एक हिस्सा बन के रह गया मैं !
कभी इनके रिवाज़ों पे तोला गया, तो कभी इनके ऐलानो से भेदा गया !
कभी मैं मंदिर का पुजारी बना, तो कभी उसी भगवान का व्यापारी बना !!
मुझे टोपी का कानून सिखाया गया !
मुझे खाप और फतवे का फर्क बताया गया !!
कभी मज़जिद के आगे जो झुक गयी नज़र, तो लाखो मुझपे उठ गयी नज़र !
कभी मैंने किसी भूखे को हाथो से खिलाया, तो मुझे गंगाजल से स्नान कराया !!
मुझे दहेज़ का फलसफा समझाया, जो ना किया तो मेरी संस्कृति से परिचय कराया !
मैंने कई निवाले मूरत को चढ़ाये, पर सामने झोपडी में नन्ही सी जान को रोज़ भूखा सुलाया !!
कभी उठने की हिम्मत की मैंने, तो मुझे धर्म की बेड़ियों से जकड़ा !
जो हवा बदलनी चाहि मैंने, तो मुझे समाज का दुश्मन समझा !!
मुझे नारी का चरित्र समझाया, पर उसकी रक्षा का दायित्व नहीं !
खोखले इन आदर्शो ने मुझे बेजान बनाया, खिलाके मूरत को उसके ही बच्चो को भूखा सुलाया !
उसने सबको एक सा बनाया, बराबर धरती का वारिस बनाया, फिर क्यों ये लकीरे, क्यों ये समाज की बेड़िया !!
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