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कौन हूँ मैं ,......
कभी राख सी उबलती मैं,
कभी शीशे में जलती मैं,
हर पारदर्शी इंसान में मैं,
वो मिटटी की दिवार मैं,
कभी झरनों सी हूँ बहती मैं,
कभी बादलो सी बदलती मैं,
हर बंजारे की बस्ती में मैं,
हर घर के किवार में मैं,
मैं जलती बुझती संसार में,,
उस समन्दर तक की प्यास मैं,
रूठ गयी हूँ जग से जो मैं,
तो बिन मौसम बरसात मैं,
नदियों सी बहती हूँ मैं,
उस टूटे दिल की छाती मैं,
मंदिर की हूँ पूजा मैं,
और पंछी सी हूँ उडती मैं,
खुद को जो बताती मैं,
तो खुद को जान न पाती मैं,
बस इतना मान लो अब तुम सब,
की हर कण से हूँ बारीक़ मैं,
पहली शिप्रा पारीक हूँ मैं................

#shipra pareek

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