• Published : 08 Apr, 2022
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                            भाग १  

 

भविस्य मेरा खायी सा अँधेरे में डूबता दिख रहा है  

मौजदा हालातो से उभरने का कोई समाधान न सूझ रहा है  , 

लोग कह रहे सब्र करो , प्रभु कृपा बरसा आएंगे  

में पूछ रहा उन् सबसे ये अच्छे दिन कब आएंगे ? 

  

अब क्या ही कह सकता हु में इन् लोगो को  

कुछ के हालत तो मुझसे भी बिगरी है  , 

पर बिशवास है इनके मैं , जो मुझमे अभी नहीं  

में ढूंढ रहा कमी खुद में ही कही  || 

  

गरीबी की रेखा बिना किसी अंत के खींची जा रही है  

शिक्षा में उत्तीर्ण युवा भी , बेरोजगारी की लपेटे में आ गयी है , 

तो ऐसे में कैसे उगेगा नया सबेरा ? 

कब सब बदलाव के धुन गायेंगे ?   

पता नहीं ये अच्छे दिन कब आएंगे  || 

  

ऐसा नहीं में दुर्गम भविस्य की सोच , वर्तमान के सामने झुक रहा  

पर में करू तो करू क्या ? किस्मत भी तो  साथ नहीं दे रहा , 

फिर में किसी से सुनता हु ," किस्मत की लकीर तो तेरे मुट्ठी में  है 

सब्र से  प्रयास कर , सफलता की कुंजी इसी गुठी में है  

दोष मत दे अपने किस्मत को , पाषाण सा बना अपने निश्चय को 

सब कर्म फल पाएंगे ,तेरे भी अच्छे दिन आएंगे  "  || 

 

                            भाग २  

 

आ रहा है मौसम पतझड़ का  , दिन भी अच्छे आएंगे  

पेड़ -अंकुर फुल सब खिलेंगे  , सबके जीवन को भी ये सुगन्धित कर जायेंगे  

  

क्या कभी देखा  है तुमने अपने अस्तित्व की  सच्चाई को ?  

क्या नाप पाया है तुमने , ब्रह्माण्ड की गहराई को ? 

और वो ब्रह्मण्ड परम ब्रम्ह की एक कण भी नहीं है  

हमारी सुख - दुःख , सब की  आशा - अभिलाषा ,  

एक सूक्ष्म भू -गोले में बंधी है  

फिर किस बात की ईर्ष्या लोगो  से ?  

क्यों है तेरे इतने महत्वकांछा औरो से ?  

  

 अगर किसी कार्य के पीछे परिश्रम तेरी होगी  

अपने मंजिल को हासिल करने की, यदि झकझोर मनोबल  होगी , 

तो सफलता की आहट तुझे  दूर से सुनाई देगी  

संतुष्टि तुझे जीवन कर्म-पथ  से मिलेगी  

अर्थ तेरे भी अस्तित्व की होगी ।।  

  

अच्छे दिन का इंतज़ार मत कर  

व्याप्त अपने कर्म पथ पे चल  

पतझड़ तेरे लिए भी नयी बहार लाएंगे  

तुम्हारे भी अच्छे दिन आएंगे ।।   

                                       

          

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Aman Kumar Jha

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