• Published : 23 Apr, 2022
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                                          भाग1

बंजारा हु में पर अकेला नहीं

सब बन बैठे है बंजारे, कभी न कभी कही न कही

कोई काम की तलाश में ,बंजारा सा फिर रहा है

कोई कविता लिखने की आस में ,ख्वाबो में डूब रहा है

कोई आयने में झांक कर, खुद को ढूंढ रहा है

कोई सफलता की राह पे ,और आगे बढ़ रहा है

जीवन के इस यात्रा में सब ,मंजिल पाने की होड़ में लगा है 

 

                                         भाग 2

बंजारा हु मैं, निकला राह की तलाश में

भटक रहा इधर उधर, भूख और प्यास मे 

घर नहीं है एक मेरा , ठिकाना खोजे फिर रहा हु

गाँव -गाँव गली मोहल्ले हो कर ,शहर की और बढ़ रहा हु 

 

दिन बदले शहर बदला ,बदले साथी मेरे साथ में

पर में तो अभी भी चला जा रहा , अपनी राह की तलाश में ।।

भिखारी नहीं हु में, में भीख का नहीं खाता हु

चलते चलते कुछ काम कर , में चंद पैसे जुटा लेता हु ।।

भट्टी जैसी तपती धुप में ,पल पल जल रहा हु

आँखों से सुखी आंसू ,पीड़ा मे बहा रहा हु |

फिर भी मंजिल तलाशने की , जिद है मुझमे

इसिलए कांटो को भी , फूल की तरह अपना रहा हु ।।

फिर मौसम बदले , साथ में चलने वाले राही भी बदले

नहीं बदले तो वो मेरे पग ,जो एक काल्पिनिये मंजिल की ओर चला जा रहा 

 

भिन्न भिन्न तरह के लोग मिलते है ,मुझे सफर में

किसी से मिल रहा सुकून सा सहारा ,

पर कुछ के ताने काटो से चुभ रहे है |

पर इससे नहीं रुकते मेरे ढृढ चाल,

में गीत गुणगुनाये अपनी राह की और अग्रसर हो रहा 

 

थकता हु मैं,थक कर चूर हो जाता हु

पर इन सबको अपने मंजिल के बीच कि बाधा मान कर ,

में अपना मनोबल बढाता हु 

खुले आसमान में तारो को गिन गिन कर ,में अपनी रात गुजरता हु

फिर सुबह एक दिनचर्या जैसे ,नए आस लेकर में रास्ते की ओर बढ़ता हु 

 

उरता आया एक तिनका पेड़ से

आँख मेरा नम कर गया ।

जख्म इतना गहरा दिया की

बाकी दर्द मेरा कम कर गया 

 

बैठ पेड़ की छाया में ,मै विचलित मन से सोचता हु

क्यों ऐसा मेरा हाल है ।

इसका जवाब चाहिए

पर बन ये बैठा एक सवाल है 

 

नहीं कोसता में अपने भाग्य को

किस्मत को दोष नहीं देता हु

सब्र का फल मीठा होगा , यही सोचकर

में रास्ते में आने वाले अवरोधों से चुनौती लेकर लड़ता हु 

 

बंजारा हु में ,शरीर से तो चलता ही हु

पर बैठ जब आत्म चिंतन कर ।

सही राह तराशता हु

तब ख्यालो में भी भटकता हु 

 

मंजिल के अंत का तो पता नहीं मुझे

पर समय समय थहरकर, कर्म में अपना करता हु ।

प्रेरणा इन सबसे ले के ,अपने

जीवन का अर्थ में समझता हु 

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Aman Kumar Jha

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