
जब,
मजबूरी बहाना हो जाये
नफा नुक्सान हो
इश्क कारोबार हो जाये
गुफ्तगू सुबह शाम हो
मगर, मिलना मुहाल हो जाये
तुम भी परेशान रहो
मैं भी परेशान रहूँ
तुम्हे भी फिकर सताए
मैं भी न सो सकूँ
यह दूरियां जब दीवार हो जाएँ
तब,
बेहतर है
तुम मुझे भूल जाओ
मैं तुम्हे भूल जाऊं
दोनों न किसी पर बोझ बने
न कोई शक हो
न कोई बवाल मचे
हाँ,
मैं हार गया हूँ
कभी अपनी तो कभी तुम्हारी मजबूरियों से
हाँ,
कोई पूछे तो कह देना
"असीर" कायर था
बेवफा था
डर गया तन्हाई से
चला गया ज़िन्दगी से बहुत दूर
कहकर अलविदा....
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