
ना शोर है ना सन्नाटा है
न भरी हुँकार है
ना ही दिया दिलासा है
वो उड़ पड़ा इक परिंदा इन काफिलों से अलग
मन में आँधियों का जोर है
पर लिए बाल जिज्ञासा है
कभी लड़ता, कभी लड़खड़ाता है
कहीं धूल में ओझल होता
तो कभी धूप से नाता है
लो बढ़ चला एक अंतहीन मुसाफिर वो
लगता शिव का रूप है
लिए सिकंदर का इरादा है
Based on the protagonist of A Thousand Unspoken Words by Paulami Duttagupta
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