• Published : 27 Aug, 2015
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वो परिंदा था सबसे अलग...

उसको आज़ादी की थी चाह ...

ढूंढ रहा था वो आज़ादी की राह...

जी  रहा था पिंजरे में वो घुट घुट कर...

जानता था वो मंज़िल मिलेगी उसको चाहे कैसा भी हो अंजाम...

हो कर रहेगा आज़ाद वो इसका था उसको गुमान ...

एक दिन मिला मौक़ा परिंदे को  पिंजरा छोड़ भरने  को नई उड़ान ....

हर बंधन को छोड़  परिंदा छू  रहा  था  अपना आस्मां ..

उसका विश्वास ही था जो  पाया  वो  वापस अपनी  आज़ादी...

दुनिया उसकी इस उड़ान से थी बड़ी हैरान...

बेज़ुबान परिंदा  भी जान गया आज़ादी  है उसका  भी अधिकार...

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Sanchita

Member Since: 25 Aug, 2015

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