आज फ़िर बेवक्त उसकी याद चली आयी जैसे दरख्तों से छनकर धूप चली आयी
मौसम भी खुशनुमा सा है आज कुछ उसपर ये हसीन पुरवाई चली आयी
गनीमत है हया भी है उसकी आँखों मे सलवार - कमीज पेहने जो तेह्जीब चली आयी
इस जमाने मे भी पाक दामन है कोई तो दिल की गलियों मे आज ये तसल्ली चली आयी
दिखती है संजीदा , असल मे नादान है उदास आँखों मे छुपकर महफिल चली आयी
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