• Published : 05 Sep, 2015
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ना जाने क्यों लोग  .......... चेहरों से दिल लगाते हैं ,

चेहरा ना देखने पर  …… खुद को "दीवार" से बातें करते हुए पाते हैं । 

 

हमसे भी एक शख्स ने  .......... जब "चेहरा" देखने की फरमाइश की ,

तब बिना हँसे हमने  .......... अपने चेहरे पर एक छींटाकशी करी । 

 

कि क्या है इस चेहरे में ऐसा भला ………… जो एक वजूद को था उसने नकारा ,

और क्या हो गया अब ऐसा भला  .......... जो चेहरा देखते ही उसने था हमें पुकारा । 

 

ना जाने क्यों लोग  .......... चेहरों से दिल लगाते हैं  ...........

 

वो खुश था ये जान अब  .......... कि हम एक ज़िंदा इंसान हैं कहीं ,

हम दुखी थे ये सोच तब  ……… कि क्यूँ हम बने नादान  ……… बात मान उसकी कही । 

 

चेहरा तो सिर्फ एक पहचान है  ……… जो एक सुकून का एहसास देता है  ,

असली मुद्दा तो आकर के .......... कहीं और ही जनम लेता है  । 

 

यहाँ जनम उस चेहरे से ज्यादा  .......... उन ख्यालों का उस वक़्त हुआ था ,

जहाँ पर इस चेहरे के बिना  …… उस शख्स ने मेरे वजूद का खून किया था । 

 

ना जाने क्यों लोग  .......... चेहरों से दिल लगाते हैं  ...........

 

जी तो चाहता है मेरा  ............. कि लगा दूँ आग अपने चेहरे पर आज ,

ताकि फिर कोई शख्स ये ना कहे  .......... कि क्यूँ हो तुम गुमनाम गलियों की सरताज़ ?

 

याद रहे कि "चेहरे" पर लिखी भाषा  ………… कभी एक ख्वाब नहीं बुनती ,

क्योंकि "चेहरे" तो  झूठे होते हैं  …… और उनसे निकली आवाज अक्सर होती रूखी । 

 

वो शख्स ना जाने मेरा "चेहरा" देख  …… क्या-क्या अनुमान लगा गया ?

कि खुद अपने चेहरे को तस्वीर में देख  …… मेरी तस्वीर को पसीना आ गया । 

 

ना जाने क्यों लोग  .......... चेहरों से दिल लगाते हैं ,

चेहरा ना देखने पर  …… खुद को "दीवार" से बातें करते हुए पाते हैं ।। 

About the Author

Praveen Gola

Member Since: 15 Feb, 2015

Myself, Mrs.Praveen Gola is an online Freelance Writer and Journalist from the last three years.As writing is my passion so I always try to provide something new and unique to my Readers. Poetry is my hobby and I always try to eliminate the society e...

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Published on: 05 Sep, 2015

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