
दूर बहुत हु दोस्तों से दोस्तों कि मैं कहानी लिख दु ,
संग गुज़ारी जो उन सबके वो एक ज़िन्दगानी लिख दु,
रो पड़ता हु सोच के वो दिन लौट के अब ना आयेंगे
हँसते खेलते बड़े हो गये साथ मे आई जवानी लिख दु,
लिखने को तो लिख दु वो दिन जब हम साथ मे खाते थे,
एक दूसरे कि तांग खींच कर मंद मंद मुस्काते थे ,
ये सब लिखने से अच्छा बस अपनी आँख का पानी दू ।
मैं ना भूला हुँ तुम सबको इस बात कि जुवानी लिख दु,
कृष्ण सुदामा फिर मिले थे ,ये दोस्ती कि निशानी लिख दु,
फिर मिलेंगे मौज करेंगे गले मिल मुश्कायेंगे ,
आश लगाये बैठा हु कि अच्छे दिन कब आयेंगे ,
फिर आ जाए बहार चमन में हम सबकी एक कहानी लिख दु,
मिलेंगे जिस दिन मस्त ऋतु में वो मस्त ऋतु मस्तानी लिख दु ,
हो गये बड़े अब तो हम सब सब वो दिन ना आयेंगे इसीलिये मैं कह रहा हूँ।
सब कुछ लिखने से अच्छा बस अपनी आँख का पानी लिख दू
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