• Published : 03 Sep, 2015
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कलम से बाँधना है कठिन 
क्योंकि, उसके अनेक रूप - रंग है 
वह गतिमान है -
उसके हर कदम में परिवर्तन 
इस परिवर्तन में ही 
कभी सुख , कभी दुःख 
अंततः कुछ भी नहीं।

 

उसके आरम्भ अंत का प्रश्न
एक अनसुलझी पहेली -
जिसका उत्तर सृष्टिकर्ता ही जाने 
ग्रंथों - शास्त्रों में विवेचन 
कितना सही, पता नहीं-
वह सम्पूर्ण सृष्टि को प्रभावित करता 
आगे कदम बढ़ाता रहता ।


 
उसके कदम से कदम मिलाने का साहस
क्या मानव जाति करने में है सक्षम ?
जो जितना मिला पाता
वह उतना ही झूमता 
झूमकर कभी शिखर चूम लेता
चित्त कभी शांत हो जाता 
उन कदमों पर अपने प्रतीक रख देता ।

 

वह निशान सदैव कदमों पर रहेंगे ?
यह ब्रह्म को ही परिज्ञात होगा 
किन्तु , अनेक चिह्न है शाश्वत
इसीलिए ,त्रेता - द्वापर से है हम अभिज्ञ
अतीत से उसकी गति समझ जाते हैं 
तभी तो उस गति में -
डूबने को आतुर होते हैं ।

 

वह निरंतर बढ़ रहा है 
हमें भी चला रहा है 
सौंदर्य से भयावह तक 
विभिन्न छवियाँ दिखा रहा है 
कभी वह हमें दिखाता 
कभी हमारे निर्णय दर्शन करा देते 
उसकी लीलाओं से सदैव घिरे रहते ।

 

अधिक विवरण के लिए 
अमूल्य अक्षर जोड़ना दुरूह है 
बस - उस प्रवाह में -
कभी जिज्ञासायें शांत तो कभी परेशानियां बढ़ती 
निर्माण - नाश का चक्र दर्शाता 
वह कोई नहीं- ' समय ' है 
जिसको कलम से बाँधना कठिन है ।

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Vinayak Uniyal

Member Since: 27 Aug, 2015

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Published on: 03 Sep, 2015

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