• Published : 22 Sep, 2020
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ऊर्दू हिंदी जहाँ हाथ पकड़ टहलती है,
उस बाग़ में चलो ज़रा घूमके आएँगे,
तुम नीरज को पढ़ना मेरी आँखों में,
हम तबीयत से तुमको फैज़ सुनाएँगे।
 
दुष्यंत के ग़ज़ल के साये में
धूप तलाशा करना फिर,
हरिवंश जी अगर बुलाए तो
अग्निपथ पे उतरना फिर,
अंदाज़-ए-फ़राज़ नायाब है बहुत,
रूमानी भी है, रूहानी भी,
निदा फ़ाज़ली के शेरोँ में
बचपन भी है, जवानी भी।
 
अज्ञेय का फलसफा हैरान करे,
पर क्यों उससे अंजान रहे,
मीर-दाग-ज़ौक़ सब सितारे है,
इस चमक से रोशन आसमान रहे,
ग़ालिब खुदा है ग़ज़ल के,
तो सजदा करो,इबादत में झुको,
क्रान्ति ही थी कविता जिसकी
पाश की तुम शहादत में झुको।
 
चाँद सब कुछ है,बस चाँद नही,
गुलज़ार की जादूगरी ये कहती है,
धड़कते दिलों में साहिर की कशिश
एक परछाई की सूरत में रहती है,
राष्ट्रकवि दिनकर की सुन्दर,
कविताओं की है तादाद बहुत,
कैफ़ी की कैफियत मदमस्त तो है,
ख्यालात है इनके आज़ाद बहुत।
 
गीतों नग्मो की दुनिया में
अपना भी फिर बसेरा होगा,
लफ़्ज़ों की चौखट पे सोचो,
ख्यालों का हसीं डेरा होगा,
तमाम मतला,तमाम मुक्तक,
ये काफ़िया,और ये बहर भी,
इन गीतों के साथ सुबह गुज़री,
जिस ग़ज़ल के साथ दोपहर भी,
ये वक़्त हम है,ये दौर हम है,
नही समझना कुछ और हम है,
हिंदी है हम में,हम में है उर्दू,
हमसे है ये खूबसूरत ज़बान ज़िंदा,
ये काव्य सारा,ये तमाम ग़ज़लें,
मेरे ख्वाबों का इनमे,
है हिन्दुस्तान ज़िंदा।

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Sajal Kumar

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Hindi Hai Hum Me,Hum Me Hai Urdu
Published on: 22 Sep, 2020

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