• Published : 30 Sep, 2015
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कैसे बताऊँ नाम उनका, जो बेनाम से मिले हैं,

ना पूछिये तारीफ उनकी, वो गुमनाम से मिले हैं,

 

मेरी तिश्नगी बुझाने, वो मुझे आब से मिले हैं,

शामों को रौशन करने मेरी, वो चिराग़ से मिले हैं,

खुशियों को दिखाए राह-ए-दिल, वो आहट से मिले हैं,

और बन जाएँ सुकून-ए-दिल, वो राहत से मिले हैं,

 

करदे गुलज़ार ज़िन्दगी, वो सोहबत से मिले हैं,

ज़रा और जी लूँ खुद को मैं, वो मोहलत से मिले हैं,

 

हुजूम-ए-वफ़ा बन जाऊं, वो मेहवर से मिले हैं,

जो करदे रह नुमाई मेरी, वो रहबर से मिले हैं,

मेरे हुस्न की जो ताब लाए, वो ज़ेवर से मिले हैं,

हो जाऊं कशिश-ए-क़ायनात, वो गह्वर से मिले हैं,

 

जो रंग दे अफ़साने मेरे, वो तसव्वुर से मिले हैं,

जो रौशन करदे रूह को, वो मुनव्वर से मिले हैं,

 

लज़्ज़त-ए-इश्क़ से लुत्फ़ अन्दोज़, वो क़ुसूर से मिले हैं,

के जिसमे हूँ मदहोश मैं, वो सुरूर से मिले हैं,

ख्वाबों को जो करदे हक़ीक़त, वो फितूर से मिले हैं,

अर्श से ले जाएँ फलक तक, वो ग़ुरूर से मिले हैं,

 

बेखोफ सा है वजूद मेरा, वो हिफाज़त से मिले हैं,

कोई और तमन्ना बाक़ी न रही, वो इनायत से मिले हैं,

 

ठहरी हुई तज्वीज़ों को, आग़ाज़ से मिले हैं,

साँसों में जो लिपटी रहे, वो आवाज़ से मिले हैं,

खामोशियों को चूम ले, वो अल्फ़ाज़ से मिले हैं,

कर दे मेरे हर लफ्ज़ को तरन्नुम, वो साज़ से मिले हैं,

 

कैसे बताऊँ नाम उनका, जो बेनाम से मिले हैं,

ना पूछिये तारीफ उनकी, वो गुमनाम से मिले हैं.

 

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Tarannum

Joined: 31 Aug, 2015 | Location: ,

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Published on: 30 Sep, 2015

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