
कुछ कर दिखाने का सपना जहाँ सँवारा था
अपना अधूरा सा बचपन जहाँ गुज़ारा था
छोटी गलियों का छोटा सम्शान था वो
घर ना कहना उसे ..किराये का मकान था वोह
जहाँ पूरे घर का अंदाजा मिल जाता तुम्हे सोने पर.....
जहाँ हांथ एक कोने तो पाँव दूसरे कोने पर
पर मजबूरी थी ..तो मकान मालिक को फरिश्ता बना लिया था
हमने दरों दीवारों से भी एक रिश्ता बना लिया था
दिल बेह्लाने कि एक वजह वहाँ भी मिल गयी थी
हवा आने कि जगह वहाँ भी मिल गयी थी
इस जगह हर रात सितारों कि टोली आती तो बन ठन कर
ये वो जगह जहाँ से धूप भी आती तो छन छन कर
जहाँ से बरसात टपकती ..तो कभी तूफान नजर आता था
मुझे छोटी खिड़की से छोटा आसमान नजर आता था
एक दुसरे के जख्मों को जैसे सील लिया करते थे
मैं और मेरा आसमा हर शाम उसी खिड़की पर मिल लिया करते थे
पर कभी गीले कपड़े तो कभी तौलिये आ जाते
इस तरह हमारे बीच बिचौलिये आ जाते
तो एक शाम मैंने किया होंसला था
अपने ही लिए एक किया फैंसला था
के मैं सच अपना हर अरमान कर दूँगा
मौन बड़ी खिड़की बना कर बड़ा आसमान कर दूँगा
पर ऐसे ख्वाब भी ख्वाबों मैं आते हैं ..
तो पापा और उनके अल्फाज बोहत याद आते है
वो कहते थे क मेहल और कोठी बनानी है तो खिड़कियों से मोहब्बत अच्छी नहीं
और आस्मानि बाज़ तक पोहंचना है तो चिड़ियों से मोहब्बत अचछी नहीं
और मैं कहता था ..
क्या करना है आसमानि बाज़ के ठिकानों तक पोहंच कर
क्या कर लेंगे आसमानि उनकी आवाजों को दबोच कर
खाली मेहल कोठियों मैं रखूँगा किसे मैं
जब खिड़कियाँ ना होंगी तो देखुंगा किसे मैं
पर सच केह्ते थे पापा...के ख्वाब हकीकत अकसर नहीं होती
इस शहर मैं लोगों को अपने घर भी मयस्सर नहीं होते
पर यकीन मानो मैंने एक जंग को आज जीत लिया है
इस शहर के कोने मैं अपना एक कोना खरीद लिया है
मेरे खुले जख्मों पर किसी ने मर्हम सा लगाया है
मैंने उस घर को दुल्हन सा सजाया है
रंग भरे हैं...रंगीनिया लगा दी हैं
मैंने उस 370sqft के मकान मैं बड़ी खिड़कियाँ लगा दी है
क्यों कि अब मैं यह जान चुका हूँ
इस सच को पहचान चुका हूँ
के बड़े ख्वाबों को बड़ा शहर जरूरी नहीं
और बड़ी खिड़कियाँ होनी चाहिए..बड़ा घर ज़रूरी नहीं
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