• Published : 01 Sep, 2015
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खत

 

चिठ्ठी लिखे अर्सा बीत गया ।

 

कुछ नई खबर, कुछ चुलबुली बातचीत ,

इंतज़ार में मौसम बदल गया।

 

ऐसा क्या समय के पाबंध हो गये ?

 

बाबा? खत लिखना तुम कब से भूल गये ?

 

हर छुट्टी तुम्हारी बाट देखा करती हूँ ।

 

हर रात, तारों में तुम्हारी परछाई देखा करती हूँ ,

उन कन्धों के झूले की आस लगाये बैठी हूँ ।

 

क्या हाल है, कैसे हालत हैं?

 

रूठे हो क्या? ऐसी क्या बात है?

 

शरारत समझ के ही माफ़ कर दो ।

 

 

ऐसी भी क्या चुप्पी? अब तो जाने दो ।

 

जीवन की रेखा बहुत सीमित है  ,

अब तोह मुझको मनाने दो ।

 

कक्षा में एक नई सहेली बनी ,

 

कल माँ के चेहरे पर फिर हस्सी नही खिली -

फिर भाई ने बौख्लाके गिलास तोड़ दिया,

दादी माँ ने सुबह नाश्ते से फिर मुह मोड़ लिया ।

 

घर में एक चीरता सा सन्नाटा महसूस होता है ,

 

हर बार जो तुमसे मतभेद हुई, सोच के अफ़सोस होता है ।

 

याद तुम्हारी बेहद आती है,

 

तस्वीरों के संग, बस जिंदगी कट ही जाती है ।

 

बस एक झलक, एक बार यादों से बाहर मुलाकात मुमकिन नही?

 

एक छोटा सा ख़त भी क्या तुमको मंज़ूर नही?

 

About the Author

Chhaya Dabas

Member Since: 28 Aug, 2015

A wrtier since 10 and an extrovert by birth. Love reading and dream is to travel the world for free....

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