
जल्दी वापस घर आ जाओ
याद बहुत ही आती है
कहाँ गए हो लाल मेरे तुम
माँ आवाज लगाती है
मेरी ममता अब भी दर पे
आस लगाए रहती है
आएगा तू इक दिन वापस
पल पल मुझसे कहती है
दरवाजे पर होती दस्तक
इक उम्मीद जगाती है
तुझे न पाकर लाल वहां पर
आस टूट फिर जाती है
कहाँ गए हो लाल.......
अब भी रोटी चूल्हे पर मैं
तेरे लिए बनाती हूँ
तेरी थाली रख पहले जल
लोटा भर ले आती हूँ
तेरी बीवी रो रोकर फिर
मेरा भरम मिटाती है
आँसू पीकर सारे अपने
माँ तेरी सो जाती है
कहाँ गए हो लाल....
परमवीर तमगे को तेरे
रोज सजाकर रखती हूँ
खाली होते दाल के' डब्बे
आँसू भर कर तकती हूँ
रूई के फाहे को मक्खन
बता बता भरमाती है
बिट्टू की माँ रोज इस तरह
रोटी उसे खिलाती है
कहाँ गए हो लाल.......
तेरी बीवी का माथा अब
सूना सूना रहता है
उसकी चुप्पी से सन्नाटा
घर में पसरा रहता है
न करती श्रृंगार है कोई
गीत न कोई गाती है
सबसे छुपकर तन्हाई में
आँसू रोज बहाती है
कहाँ गए हो लाल...
तेरे बेटे का मुखड़ा अब
मुरझाया सा रहता है
रोते रोते आकर मुझसे
रोज रोज ये कहता है
दादी कब आएंगे पापा
उनकी याद सताती है
उसकी भोली बातें सुनकर
चुप्पी मुझ पे छाती है
कहाँ गए हो लाल...
मेरे वीर सपूत की जान
लिपट तिरंगे में आई
भारत माँ ने चुना तुझे मैं
शहीद की माँ कहलायी
आँखें नीर बहाती अब तक
ममता मुझे रुलाती है
रात रात भर लोरी गाती
गोदी तुझे बुलाती है
कहाँ गए हो लाल.....
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