मुमकिन है की दो रोज़ मे तु मझको भुला दे,
मुमकिन है कि ता उम्र धड़कते रहें दिल में।
मुमकिन है शब-ए-हिज्र बरस जायें ये आंखे,
मुमकिन है शब-ए-वस्ल का एक ख्वाब रूला दे।
मुमकिन है कि आ जाओ हमें सीने से लगाने,
मुमकिन है कि तन्हा ही सफर करना हो आगे।
मुमकिन है कि हम दोनो कभी भी न जुदा हों,
मुमकिन है कि मिल कर भी न रहो साथ हमारे।
मुमकिन है खालिद ये मुहब्बत भी भरम हो,
मुमकिन है यही इश्क़ हमें पार लगा दे।
Comments