• Published : 04 Sep, 2015
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चाँदनी से नहाई सी रात में, इक बार फिर हम मिले

ज़ार-ज़ार होते दो दिलों पर, आख़िर तरस खा ही गए ये बरसों के फ़ासले

 

कुछ लम्हों के लिए मिट सी गयीं, इंतज़ार की लकीरें

और तुमको मैंने क़रीब से देखा 

नूर से नहाया हुआ हर अक्स था तुम्हारा

बिलकुल वैसे ही थे तुम, जैसा था मैंने, तुम्हे पहली बार देखा

 

आँखों से बातें करने का दस्तूर बरकरार रखा हमने, होंठ रहे 'सिले के सिले'

ज़ार-ज़ार होते दो दिलों पर, आख़िर तरस खा ही गए ये बरसों के फ़ासले

 

चाँदनी से नहाई जमीं पर, उभर आई परछाइयाँ तेरी मेरी 

जिनका पीछा करते करते हमने है ये उमर बितायी

शायद तभी पहचानते हैं हम तुम इन बेशक्ल सायों को 

परछाइँयो में कैद रहे ताउम्र, ना माँगी कभी रिहाई

 

शोर करती सी धड़कनें और चुपचाप से हैं सारे शिकवे-गिले 

ज़ार-ज़ार होते दो दिलों पर, आख़िर तरस खा ही गए ये बरसों के फ़ासले

 

चाँदनी से नहाई सी रात में, इक बार फिर हम मिले

 

 

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Priyanka

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Published on: 04 Sep, 2015

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