• Published : 24 Aug, 2015
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स्त्री.....

स्तब्ध हूँ,निःशब्द हूँ,असीमित रोशबद्ध हूँ,उजालों में भी,

अंधेरों के मध्य हूँ,

पराधीनता का आज भी अंश हूँ,

हिदायतों की , नसीहतों की , गठानें बाँधे ,

तमाम रिवाज़ों की बेड़ियों से लस्त हूँ ,

शर्म -ओ -हया जो थमाई गयी है ,

झुकी पलकों में समेटे आज भी ,

ज़माने में ,अपनी तस्वीर से,

आज भी लज्जित हूँ ,

वक़्त की सिरहन से कप -कपा जाती है रूह ,

सोच कर यूँ , 

के, 

इंसानियत की कगार पे ,

दुनिया के बाज़ार में ,

सोच के व्यापार में ,

आज भी ,

महज़ इक ” स्त्री हूँ ”…..

About the Author

Richa Dixit

Joined: 17 Aug, 2015 | Location: ,

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Published on: 24 Aug, 2015

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