• Published : 30 Sep, 2015
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बहुत दिनोँ से सोच रहा हूँ

तुम पर कोई गीत लिखूँ!

अन्तर्मन के कोरे कागज पर

तुमको मनमीत लिखूँ!

 

लिख दूँ कैसे नजर तुम्हारी

दिल के पार उतरती है!

और कामना कैसे मेरी

तुमको देख सँवरती है!

पंक्षी जैसे चहक रहे

इस मन की सच्ची प्रीत लिखूँ!

बहुत दिनोँ से......

 

लिख दूँ हवा महकती क्योँ है?

क्योँ सागर लहराता है!

जब खुलते हैँ केश तुम्हारे

क्योँ तम ये गहराता है!

शरद चाँदनी क्योँ तपती है

क्योँ बदली ये रीत लिखूँ!

बहुत दिनोँ से.....

 

प्राण कहाँ पर बसते मेरे

जग कैसे ये चलता है!

किसका रंग खिला फूलोँ पर

कौन मधुप बन छलता है!

एक एक कर सब लिख डालूँ

अंतर का संगीत लिखूँ!

 बहुत दिनोँ से.....

 

इन नयनोँ के युद्ध क्षेत्र मेँ

 तुमसे मैँ हारा कैसे!

जीवन का सर्वस्व तुम्हीँ पर

मैँने यूँ वारा कैसे!

आज पराजय लिख दूँ अपनी

और तुम्हारी जीत लिखूँ!

बहुत दिनोँ से.....

 

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Dheeraj

Joined: 27 Aug, 2015 | Location: , India

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Ttum Par Koi Geet Likhu
Published on: 30 Sep, 2015

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