
तुझे पा लेने की एक अजीब ज़िद है,
जो तुझे पा लेने भर से, ख़त्म नहीं होती |
तेरे साथ होकर भी,
तुझे, कुछ और पाना चाहता हूँ |
हर वक़्त बेताब होता हूँ,
तेरी बाहों में आने को,
पर वहाँ आकर बस,
कुछ, घुट सा रहा होता हूँ |
तेरी साँसों में घुल जाए मेरी सांस,
इतनी करीबी की है ख्वाहिश,
पर तेरे पहलु में खुद को,
अक्सर, बस रोता-बिलखता पाता हूँ |
आ ख़त्म कर दे मुझे,
या राख़ होजा मेरी रूह में;
बस आज भर की रात, चाहे जीतनी लम्बी हो,
फिर, एक नयी सुबह पाना चाहता हूँ |
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