
याद ...सुंदर मधुर॥ प्यारी सी
बारिश, मिटटी, खुशबू
और दुपहर एक अलसाई सी ...
एक ख्याल, एक अहसास
बीते लम्हों की पुरवाई सी
आके जगा गई मुझको
तेरे होने का अहसास करा गई मुझको
थम के, टहर के,
बीते गलियारों का सफर करा लायी मुझको
मेरे साथ, तेरी तरह मेरी हमराही बनी वो
डगमगाते कदमो की, डबडबाती आँखों की,
टूटते से दम की, छूटते से हौसले की,
मुझसे मेरी ही पनाहगार बनी वो
आके बैठी मेरे पास...और बस बैठी ही रही॥
न कोई सवाल, न जवाब...न ही शिकायत की
न प्यार, न लाड, न ही तस्सली दी
तेरी याद थी...
बस आके, मेरे पास बैठ के,
मुझे तेरा मुजरिम बना के ...चली गई॥
हाँ तेरी ही याद थी ॥
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