
जो मिल सके न कभी उन दिलों की बात करो,
अभी जिन्दा हूँ मै गुलों की बात करो.
साथ रहते थे शब ओ रोज़ आठों पहर,
वो ख्वाबगाह, उन मरहलों की बात करो.
पूछिए मत अभी कोताहिएं ए इश्क़, कि अभी,
वस्ल की शब है ख्वाहिशों की बात करो.
क्या बताऊँ तुझसे क्यों बिछड़ गया दानिश,
वो भी क्या दिन थे उन दिनों की बात करो.
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दिग्भ्रमित दिवस हुआ मेरा,
काटती निशा रही.
ह्रदय में कल्पना की तुलिका
नापती दिशा रही.
अस्तित्व लगता मेरा अपभ्रंश मुझको
आहत करते है स्मृति दंश मुझको.
विसंगितियों के मध्य जीता
जागता आभास हूँ
स्वजनो के बीच ही मै
बन गया परिहास हूँ
प्रोड़ता की और ले जाता युवांश मुझको
आहत करते है स्मृति दंश मुझको
वर्ष के अंतिम सिरे पर खडा
हुआ सोचता मै
बस फटी पोशाक असहाय
रहा निहारता मै
उपहार तुल्य दे गया जो गत वर्ष मुझको
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