• Published : 15 Sep, 2015
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ठहर गई थी नज़रें मेरी
उस रोज वहीं पर कहीं
देखा था जब मैंने तुम्हें 
पहली नज़र यूँही कहीं
ना जाने क्या हुआ था उस वक़्त मुझे 
एक अजब सी कशिश थी
तुम्हारी आँखों में
तुम्हारी बातों में
तुम्हारे अंदाज़ में
तुम्हारे हर इक अल्फ़ाज़ में
नज़्म पढ़ रही थी तुम
और मैं के 
तुम्हें पढ़ने की कोशिश में लगा हुआ था
तुम्हारी पेशानी पर ख़याल रखकर
आँखों में जब उतरा
तो ये जाना कि 
ये आँखें 
क्यूँ है आख़िर ? इतनी गहरी 
किसी झील की तरह
उन्ही आँखों के दरमियान 
कुछ ख़्वाब मिले थे
कुछ अश्क़ 
और मख़मली यादों के कुछ सब्ज़ ज़जीरे
ज्योंही मैंने एक ज़जीरे पर पाँव रखा 
छलकते हुए नूर की
मचलती हुई बूंद की तरह
पलकों से रिसता हुआ
सीधे लबों पर आकर ठहरा
सुर्ख़ लबों को पढ़ते पढ़ते
जाने कब एक लफ़्ज़ बन गया मैं
वो अहसास इस क़दर रूमानी था
के जैसे हौले हौले 
दिल में उतर रही हो 
इश्क़ में डूबी हुई ग़ज़ल कोई
जब तुमने नज़्म पूरी पढ़ ली 
और फिर वहाँ से ओंझल हो गई
तब कहीं होश आया मुझे 
के नज़्म बहुत अच्छी थी
सब लोग तालियां बजा रहे है
मगर मेरे हाथों की तालियां 
कुछ अलग ही आवाज़ कर रही थी
शायद नज़रों की बैचैनी
हथेलियों में उतर आई थी कहीं
तारीफ करे जा रहे थे सब 
तुम्हारी उस नज़्म की
मगर वो जो नज़्म मेरी आँखों ने पढ़ी थी
वो कोरी नज़्म नही थी
एक ज़िंदा अहसास था वो
जो कुछ देर के लिए आया
और मुझे ज़िंदा कर गया ।।

About the Author

Rockshayar Irfan Ali Khan

Member Since: 05 Sep, 2015

Journey of RockShayar…‘रॉकशायर’ इरफ़ान अली ख़ान बेसिकली अजमेर (राजस्थान) से है । फिलहाल पिंकसिटी ज...

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Published on: 15 Sep, 2015

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