
लाल किले पर मस्त तिरंगा लहर-लहर लहराया है,
आज़ादी का ज़श्न मनाने पंद्रह अगस्त फिर आया है .
जन-गन-मन का गीत आज चप्पे-चप्पे पर छाया है,
यह दिन सबको आज़ादी का सही अर्थ समझाने आया है.
आज़ाद हुए हम कुछ वर्षों की बात है,
तन की आज़ादी तो मिली पर मन की आज़ादी क्या खाक है.
जिस देश में नारी को ममता का रूप माना जाता है,
फिर व् दहेज़ की खातिर उसे पैरों तले रौंदा जाता है.
माँ-बाप की यही है मनसा की बेटी विदाई हो जाये,
पर अब तक हम बिन दहेज़ के बेटी विदा न कर पाए .
लेकिन ये सब कब तक होगा कोई न जाने सच्चा ,
फिर भी हर पल गाते है हम, सारे जहाँ से अच्छा ....
आज क्यों हो रहे है बारूदी धमाके,
आखिर क्या मिलेगा हमे अपनों को ही सता के,
जिस से मिट जाये दिलों की दूरी , वही आज़ादी कहलाती है पूरी.
बदलने लगा है भारत अपना कहता है अब हर एक बच्चा ,
तभी तो हर पल गाते है हम , सारे जहाँ से अच्छा ....
आज़ादी की करें हिफाज़त, आज़ादी की समझें कीमत,
भारत रहे विश्वगुरु बन कर , सामाजिक बुराईयाँ दूर हटा कर.
जैसे गाते पंछी , झरने , जंगल, पर्वत वादी ,
इंनके जैसे हम भी गायें, आज़ादी-आज़ादी .

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