• Published : 07 Jan, 2016
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कुछ ख्वाबे इश्क़ इन हवाओं में तलीम हैं

बड़ी उलझन हैं, कैसे सुलझाऊँ ** तरुण कुमार सैनी “TK”

जानें अंजानें कितने पीर मिलें ।

इस दिल पर जानें कितनें तीर चलें।

हर चहरे का नूर नया, और हर चेहरा दूर गया।

हर पल कुछ चहरे,  इन पलकों में बंद होते थे ।

कभी बारिश में उन जुगनू के सहारे,

उन यादों को फिर, आँखो के अश्क में ढूढ़ना ।

अक्सर शक्स गुमनाम थे वहाँ, जिक्र कुछेक का होता था जहाँ ।

हर कोई इश्के महोब्बत गुमनाम चाहता था ,

नाम भी चाहतें थे मगर गुमनाम चाहतें थे ।

ये कुछ हिस्से हैं ख्वाबे इश्क़ के, जो इन हवाओं में तलीम हैं ।

कुछ हरीयालो पेड़ों का झुण्ड रहा, कुछ सपनों की शाखा बनी ।

धीरे-धीरे होले-होले वो चर्चा में खूब रहे।

उन फूलों की खुश्बू ने, जानें कितनों का शिकार किया ।

चुपके से मैंने भी उन फूलों की ख़ुश्बू को,

अपनी पुस्तक में कैद किया।

इश्क़ इमारत खूब बनी, मगर मेरी नीव भर ना सकी ।

ये कुछ हिस्से हैं ख्वाबे इश्क़ के, जो इन हवाओं में तलीम हैं ।

तारीख़ बदलती उन पन्नों की, इश्क़ पीढ़िया पढती हैं ।

उम्र बुढापा लेता हैं, तब ख्यालात ओर जवाँ होते हैं ।

धीरे-धीरे यादों के पन्ने पलटे जाते हैं,

फिर से उन फूलों की मौसम में महक आती हैं।

जज़्बात बहक उठते हैं फिर से, वो जाम नशा ना कुछ लगता हैं।

फिर देख़ो इन बोलो से यादों की, जाने कितनी बारिश होती हैं।

ये कुछ हिस्से हैं ख्वाबे इश्क़ के, जो इन हवाओं में तलीम हैं ।

जब-जब मालिक कुछ देता हैं, यादों का दामन लेता हूँ।

कुछ ओर नहीं बस एक अंगूर की रानी, कुछ पन्नों को सहारा लेता हूँ ।

फूलों के काटों से दर्द नहीं, एह्सासें चुभन मिलती हैं ।

जानें अब तक उन पन्नों से कितनें अध्याय बने,

हर एक कहानी मेरी ना थी, जिक्र सभी का था ।

बस में तो, कुछ उलझनों का जवाब हूँ ।

ये कुछ हिस्से हैं ख्वाबे इश्क़ के, जो इन हवाओं में तलीम हैं ।

About the Author

Tarun Kumar Saini

Member Since: 03 Jan, 2016

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