• Published : 07 Jan, 2016
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हाज़ी कहता है,

ये ज़िन्दगी की किताब है तन्हा, ज़रा धीरे पढो ।

हर छोटे हिस्से की अपनी वक़र होती है

कभी हवा मे कुछ पन्ने पलटते हैं

कभी कुछ महक से रौनक अक्सर लोट आती हैं

इन ताज़गी के हिस्सों की भी अपनी वकर होती हैं

ज़िन्दगी की किताब हैं तन्हा, ज़रा धीरे पढ़ो ।

मौके दर मौके पन्ने बदलते हैं।

अक्सर यूँही मौसम की पहचान होती हैं

उम्र का तकाज़ा लोग यूँही नहीं देते हैं

उन सफ़ेद बालों में आखिर कुछ तो बात होती हैं

ज़िन्दगी की किताब हैं तन्हां, ज़रा धीरे पढ़ो

उस बड़े महल में अदब बहुत मिलता हैं ।

वहाँ छोटीछोटी बातों में भी कुछ बात होती हैं ।

चद्दर में आने पर मौसम का पता चलता हैं ।

आखिर उन ठण्डी हवाओं की भी कुछ वकर होती हैं ।

ज़िन्दगी की किताब हैं तन्हां, ज़रा धीरे पढ़ो ।

जवांनी की दहलीज पर कई सपने बुनतें हैं ।

तब बारिश की बूंदे भी सरगम होती हैं ।

ये नज़र कायनात तक उस महक का पीछा करती हैं ।

आखिर उन जवां जज्बातों की कुछ तो वकर होती हैं ।

ज़िन्दगी की किताब हैं तन्हां, ज़रा धीरे पढ़ो ।।

यंहा हर किस्से की और हर हिस्से की अपनी ही वकर होती हैं ।।

 

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Tarun Kumar Saini

Member Since: 03 Jan, 2016

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